Sunday, September 18, 2011

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बचपन के बाद भी..
एक लंबी उम्र तक...
यही लगता रहा था मुझको की..
तुम और मैं..
मुख्त्लिफ जिस्मों में
एक ही शख्सियत के हिस्से हैं...
मुझमें पोसिदा मेरे हर राज..
और रोजमर्रा के सभी वाक्यों से
तुम भी तो खूब वाकिफ़ थी...!!!

यह भी याद है मुझको की..
कई दफ़ा...
मेरे परेशानियों में जाने किस दर्द से परेशान होकर...
तुम भी रोने लग पड़ी थी....!!!

पर आज जब मैं...
गमजदा हालातों से दूर तक लिपटा पड़ा हूँ...
दूसरे आफ़रदों की तरह ..
तुम्हारे होठों से भी..
सिर्फ़ एक खुश्क सी आह भर निकलती है...
आज तुम्हारे चेहरे में मेरा चेहरा नज़र नहीं आता...
हम अलग अलग घरों से तालुक़्क़ रखते हैं...


कल तक तुम मेरी बहन थी..
आज सिर्फ़ अपने शौहर की बीवी हो...!!!:))